Tuesday, May 24, 2016

Ab toh aa...

अहमद फ़राज़ ने लिखा था...  ;)

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ ।

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ ।

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ ।

Thursday, May 19, 2016

Samajh.....


जो हमें समझ ही न सका ।
उसे हक़ है की हमें बुरा ही समझे ।।

Summer '16


#जमीन जल चुकी है #आसमान बाकी है,
#दरख्तों तुम्हारा #इम्तहान बाकी है...!

वो जो #खेतों की मेढ़ों पर उदास बैठे हैं,
उन्हीं की #आँखों में अब तक #ईमान बाकी है..!!

#बादलों अब तो #बरस_जाओ_सूखी_जमीनों_पर,
किसी का #मकान गिरवी है और किसी  का #लगान बाकी है...!!!