शाम होते ही उसने रख दिये मेरे होठो पर होंठ, इश्क का रोजा था और गज़ब की इफ्तारी थी।
ये कैंचियाँ हमें उड़ने से ख़ाक रोकेंगी कि हम परों से नहीं, हौसलों से उड़ते हैं
सुधरी हैं तो बस मेरी आदतें वरना शौक तो मेरे आज भी तेरी औकात से बडे हैं।।