"उम्र भर चलते रहे ...
मगर कंधो पे आये
कब्र तक,
बस कुछ कदम के वास्ते
गैरों का अहसान
हो गया......!!
हक़ से दे तो तेरी "नफरत" भी सर आँखों पर... खैरात में तो तेरी "मोहब्बत" भी मंजूर नहीं...!
इस दौर के इन्सां में वफ़ा ढूंढ रहे हो,
तुम ज़हर की शीशी में दवा ढूंढ रहे हो...